शुक्रवार, 9 सितंबर 2011




"अनुराग चाहिये, धैर्य भी चाहिये, साधना की सफ़लता भी, कला चर्चा एक साधना ही है"
-असित कुमार हालदार


भारतीय कला मे पुनरुत्थान काल के महान चित्रकारो मे असित कुमार हालदार का एक विशेष स्थान है। हालदार जी का जन्म १० सितम्बर १८९० को कलाभूमि कोलकता मे हुआ था। वे अवनी बाबू के प्रिय शिष्य थे और उनके मार्गदर्शन में कलकत्ता आर्ट कालेज से कला शिक्षा प्राप्त की। चित्रकार के साथ ही साथ ही वे कवि तथा गीतकार भी थे। कवि गुरु रवीन्द्रनाथ के सह्योगी असित कुमार की शैली गतिपूर्ण, सुकुमार व लयबद्ध थी। वे लकङी, रेशम एवम हार्डबोर्ड जैसे धरातल,तथा जलरंग,तेल रंग और टॆम्परा पर अधिक कार्य करते थे। उन्होने प्रयोगवादी शैली से लकङी पर लाख की वार्निश करके उस पर पेंटिंग बनाई, जिसे लोसंट य़ा लासिट कह्ते है। अजंता, जोगीमारा व बाघ के भित्तिचित्रों की अनुकृतियां तैयार करने में भी उनका योगदान था ।


हालदार जी का प्रसिद्ध चित्र जगई मगई (सन्थाल परिवार) है, जो इलाहाबाद संग्राहालय मे संगृहीत है। अकबर, बसंतबहार, कच देवयानी,ॠतु संहार,कुनाल व अशोक, रासलीला जैसे चित्र भी उनकी तूलिका से चित्रित हुये। साहित्यिक रुचि होने से असित जी ने लगभग ४० ग्रन्थो की भी रचना की। जिनमे इंडियन कल्चर एट अ ग्लांस, आर्ट एंड ट्रेडीशन, रूपदर्शिका, ललित कला की धारा जैसी कला इतिहास सम्बन्धी पुस्तके प्रमुख हैं। इंग्लैंड, फ्रांस व जर्मनी में अध्ययन कर भारत लौटने पर हालदार जी ने जयपुर व लखनऊ आर्ट कालेज में प्राचार्य का पद ग्रहण किया। वे पहले भारतीय चित्रकार थे जिन्हे रायल सोसायटी आफ़ आर्ट के फ़ेलोशिप से सम्मानित किया गया। आध्यात्मिक भाव को हालदार ने अपने रचना कौशल से चित्रो मे उकेर कर चित्रकला को नव्य रुप दिया। १४ फरवरी १९६४ तक वे कला सृजन में लीन रहे।

2 टिप्‍पणियां:

  1. महान चित्रकार पर हिन्दी में इस बेह्तरीन प्रस्तुति के लिये.. शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  2. महान चित्रकार पर हिन्दी में इस बेह्तरीन प्रस्तुति के लिये.. शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं