गुरुवार, 22 सितंबर 2011


सुधीर रंजन खास्तगीर


बंगाल शैली के आधारस्तम्भ नन्द लाल बोस के प्रिय शिष्य सुधीर रंजन खास्तगीर की उच्च कल्पनाशीलता, सृजनात्मकता एवं पर्यवेक्षण शक्ति अतुलनीय थी। भावव्यंजना की दॄष्टि से उनके चित्रों में आत्मा की अन्तरंग गहराई एवं सौन्दर्य का अथाह सागर था।




सुधीर रंजन खास्तगीर का जन्म चटगांव मे २४ सितम्बर १९०७ को हुआ था। जीवन के हर्ष और उल्लास के चित्र उनकी तूलिका को अधिक प्रिय थे, इसी कारण वे लोक जीवन के चित्रकार कहे जाते थे। विविध मौलिक सृजन शक्ति के साथ उन्होने तैल, टॆम्परा, वाश, पोस्टर, पेस्टल, जैसे कई माध्यम मे कार्य किया। वे मुख्य रुप से न्रतक, संथाल, पलास का पुष्प, और अमलताश का वृक्ष अपने चित्रों के हेतु आधिक पसंद करते थे। उनके प्रसिद्ध चित्रों मे बुक लवर, यंग डान्सर, कश्मीर आदि है। एक उत्कृष्ट चित्रकार के साथ ही साथ वे एक मूर्तिकार भी थे। उनका सर्वोत्कृष्ट मूर्तिशिल्प मां और शिशु है।





कोणार्क,एलीफ़ेटा,महाबलिपुरम जैसे स्थानों की यात्रा कर उन्होने भारतीय मूर्ति एवम वास्तुकला का गहन अध्ययन किया। १९३० मे दक्षिण भारत, और श्रीलंका के साथ ही साथ १९३७ मे इंग्लैड, इटली, जर्मनी, और फ़्रांस की यात्रा कर के वे वंहा की कला परंपरा से परचित हुए। डच चित्रकार वान गो की चित्रण लयात्मकता से वे अधिक प्रभावित हुए। इंग्लैड मे उन्होने एरिक गिल से कांस्य की ढलाई का कार्य भी सीखा। लीनो माध्यम से बना उनका टॊरसो चित्र उनकी विविध मौलिक प्रतिभा का प्रमाण है। खास्तगीर जी की कृतियो मे लावण्य, सांमजस्य व शीतलता की त्रिवेणी थी। कला शिक्षक के रूप में खास्त्गीर जी ने १९३६ में दून पब्लिक स्कूल में दायित्व संभाला। १९५६ में उन्होने लखनऊ कला महाविद्यालय के प्रधानाचार्य का पद ग्रहण किया। १९५७ में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। सेवामुक्ति के बाद १९६३ में उन्होने शान्तिनिकेतन में "पलास" नाम का एक घर बनवाया और १९७४ मे उसी घर मे इस महान कलाकार का देहावसान हुआ।

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