रविवार, 7 अगस्त 2011

अवनीन्द्र नाथ टैगोर की "कला क्रांति"




भारतीय चित्रकला की गौरवशाली विरासत को सहेजकर रखने वाले कला मनीषियों में अवनीन्द्र नाथ टैगोर का नाम अग्रणीय है. उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारतीय कला योरोपीय प्रभाव से अवरुद्ध हो रही थी. विदेशी चित्रकला के अन्धानुकरण के दौर में अवनी बाबू ने स्वदेशी कला भावना का पुनर्जागरण कर राष्ट्रीय शैली का एक कला आंदोलन शुरू किया. बंगाल स्कूल नाम के इस शैली के कलाकारों ने अजंता,राजपूत और मुगल शैली को आधार मान कर चित्रांकन किया.
7 अगस्त 1871 को जन्मे अवनीन्द्र नाथ ने परिवार में ही संगीत, साहित्य व चित्रकला की प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की थी. इसके पश्चात उन्होने योरोपियन कला व जापानी कला शैलियों में भी निपुणता प्राप्त की. वाश पद्धिति और जलरंगों के प्रयोग से निर्मित उनके चित्रों में भारतमाता, राधाकृष्ण, बुद्ध जन्म, बुद्ध व सुजाता, शाहजहां की मृत्यु, अभिसारिका आदि है. कलाकार होने के साथ वे बंगला साहित्यकार भी थे.
कला शिक्षक के रूप में कलकत्ता आर्ट कालेज के वाइस प्रिंसिपल पद पर उन्होनें नये उदयीमान कलाकारों के लिये प्रेरणास्रोत का काम किया. उनके शिष्यों में नंदलाल बोस, क्षितींद्र नाथ मजूमदार, यामिनी राय, असित कुमार हालदार, देवी प्रसाद राय चौधरी आदि कलाकार है.
देश की सांस्कृतिक परम्परा को मौलिकता से अभिव्यक्त करने के लिये उन्होने "इंडियन सोसायटी ऑव ओरियंटल आर्ट" की स्थापना की थी. सन 1957 में देहावसान के बाद भी उनका नाम भारतीय कला के इतिहास में अमर है.
राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत अवनीन्द्र नाथ टैगोर की "कला क्रांति" का ही परिणाम है कि आज भारतीय चित्रकला नित्य नये आयाम रच रही है.

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