बुधवार, 23 नवंबर 2011

जहाँगीर सबावाला



जहाँगीर सबावाला एक ऐसा चितेरा जिसने प्रकृति के सौन्दर्य - असौन्दर्य की रहस्यता को सहजता व सुगमता से कैनवास पर उकेरा। इस महान चित्रकार का जन्म मुम्बई के एक समॄद्ध पारसी परिवार में 1922 मे हुआ था।
सर जे. जे. स्कूल आफ़ आर्ट से कला शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होने विभिन्न कला विधाओं में रचना की। इंग्लैंड व फ़्रांस में कला अध्ययन के बाद विभिन्न यूरोपीय वादो से प्रभावित होकर उन्होने शास्त्रीयतावाद , घनवाद ,प्रभाववाद , सूफ़ी रहस्यवाद आदि कला शैलियों मे कार्य किया । झरना , शान्ति , उजड़ गाँव , ऊंटों के विश्राम आदि चित्र आपकी तूलिका से कैनवास पर उभरे । 1951 में मुम्बई के होटल ताज में उनकी पहली कला प्रदर्शनी लगी थी और उनकी अन्तिम कला प्रदर्शनी "रिकोर्सो" आईकोन गैलरी, न्यूयार्क 2009 में आयोजित हुई थी । 1977 में उन्हें पदम श्री से सम्मानित किया गया था ।
फ़िल्म निर्माता अरुण खोपकर ने सबावाला के जीवन पर "कलर आफ़ अब्सेन्स " फ़िल्म बनाई, जिस के लिये अरूण जी को राष्ट्रीय पुरुस्कार मिला । इस महान कलाकार की आत्मा 2 सितम्बर 2011 को कला जगत मे अमर हो गई ।

गुरुवार, 22 सितंबर 2011


सुधीर रंजन खास्तगीर


बंगाल शैली के आधारस्तम्भ नन्द लाल बोस के प्रिय शिष्य सुधीर रंजन खास्तगीर की उच्च कल्पनाशीलता, सृजनात्मकता एवं पर्यवेक्षण शक्ति अतुलनीय थी। भावव्यंजना की दॄष्टि से उनके चित्रों में आत्मा की अन्तरंग गहराई एवं सौन्दर्य का अथाह सागर था।




सुधीर रंजन खास्तगीर का जन्म चटगांव मे २४ सितम्बर १९०७ को हुआ था। जीवन के हर्ष और उल्लास के चित्र उनकी तूलिका को अधिक प्रिय थे, इसी कारण वे लोक जीवन के चित्रकार कहे जाते थे। विविध मौलिक सृजन शक्ति के साथ उन्होने तैल, टॆम्परा, वाश, पोस्टर, पेस्टल, जैसे कई माध्यम मे कार्य किया। वे मुख्य रुप से न्रतक, संथाल, पलास का पुष्प, और अमलताश का वृक्ष अपने चित्रों के हेतु आधिक पसंद करते थे। उनके प्रसिद्ध चित्रों मे बुक लवर, यंग डान्सर, कश्मीर आदि है। एक उत्कृष्ट चित्रकार के साथ ही साथ वे एक मूर्तिकार भी थे। उनका सर्वोत्कृष्ट मूर्तिशिल्प मां और शिशु है।





कोणार्क,एलीफ़ेटा,महाबलिपुरम जैसे स्थानों की यात्रा कर उन्होने भारतीय मूर्ति एवम वास्तुकला का गहन अध्ययन किया। १९३० मे दक्षिण भारत, और श्रीलंका के साथ ही साथ १९३७ मे इंग्लैड, इटली, जर्मनी, और फ़्रांस की यात्रा कर के वे वंहा की कला परंपरा से परचित हुए। डच चित्रकार वान गो की चित्रण लयात्मकता से वे अधिक प्रभावित हुए। इंग्लैड मे उन्होने एरिक गिल से कांस्य की ढलाई का कार्य भी सीखा। लीनो माध्यम से बना उनका टॊरसो चित्र उनकी विविध मौलिक प्रतिभा का प्रमाण है। खास्तगीर जी की कृतियो मे लावण्य, सांमजस्य व शीतलता की त्रिवेणी थी। कला शिक्षक के रूप में खास्त्गीर जी ने १९३६ में दून पब्लिक स्कूल में दायित्व संभाला। १९५६ में उन्होने लखनऊ कला महाविद्यालय के प्रधानाचार्य का पद ग्रहण किया। १९५७ में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। सेवामुक्ति के बाद १९६३ में उन्होने शान्तिनिकेतन में "पलास" नाम का एक घर बनवाया और १९७४ मे उसी घर मे इस महान कलाकार का देहावसान हुआ।

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011




"अनुराग चाहिये, धैर्य भी चाहिये, साधना की सफ़लता भी, कला चर्चा एक साधना ही है"
-असित कुमार हालदार


भारतीय कला मे पुनरुत्थान काल के महान चित्रकारो मे असित कुमार हालदार का एक विशेष स्थान है। हालदार जी का जन्म १० सितम्बर १८९० को कलाभूमि कोलकता मे हुआ था। वे अवनी बाबू के प्रिय शिष्य थे और उनके मार्गदर्शन में कलकत्ता आर्ट कालेज से कला शिक्षा प्राप्त की। चित्रकार के साथ ही साथ ही वे कवि तथा गीतकार भी थे। कवि गुरु रवीन्द्रनाथ के सह्योगी असित कुमार की शैली गतिपूर्ण, सुकुमार व लयबद्ध थी। वे लकङी, रेशम एवम हार्डबोर्ड जैसे धरातल,तथा जलरंग,तेल रंग और टॆम्परा पर अधिक कार्य करते थे। उन्होने प्रयोगवादी शैली से लकङी पर लाख की वार्निश करके उस पर पेंटिंग बनाई, जिसे लोसंट य़ा लासिट कह्ते है। अजंता, जोगीमारा व बाघ के भित्तिचित्रों की अनुकृतियां तैयार करने में भी उनका योगदान था ।


हालदार जी का प्रसिद्ध चित्र जगई मगई (सन्थाल परिवार) है, जो इलाहाबाद संग्राहालय मे संगृहीत है। अकबर, बसंतबहार, कच देवयानी,ॠतु संहार,कुनाल व अशोक, रासलीला जैसे चित्र भी उनकी तूलिका से चित्रित हुये। साहित्यिक रुचि होने से असित जी ने लगभग ४० ग्रन्थो की भी रचना की। जिनमे इंडियन कल्चर एट अ ग्लांस, आर्ट एंड ट्रेडीशन, रूपदर्शिका, ललित कला की धारा जैसी कला इतिहास सम्बन्धी पुस्तके प्रमुख हैं। इंग्लैंड, फ्रांस व जर्मनी में अध्ययन कर भारत लौटने पर हालदार जी ने जयपुर व लखनऊ आर्ट कालेज में प्राचार्य का पद ग्रहण किया। वे पहले भारतीय चित्रकार थे जिन्हे रायल सोसायटी आफ़ आर्ट के फ़ेलोशिप से सम्मानित किया गया। आध्यात्मिक भाव को हालदार ने अपने रचना कौशल से चित्रो मे उकेर कर चित्रकला को नव्य रुप दिया। १४ फरवरी १९६४ तक वे कला सृजन में लीन रहे।

रविवार, 7 अगस्त 2011

अवनीन्द्र नाथ टैगोर की "कला क्रांति"




भारतीय चित्रकला की गौरवशाली विरासत को सहेजकर रखने वाले कला मनीषियों में अवनीन्द्र नाथ टैगोर का नाम अग्रणीय है. उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारतीय कला योरोपीय प्रभाव से अवरुद्ध हो रही थी. विदेशी चित्रकला के अन्धानुकरण के दौर में अवनी बाबू ने स्वदेशी कला भावना का पुनर्जागरण कर राष्ट्रीय शैली का एक कला आंदोलन शुरू किया. बंगाल स्कूल नाम के इस शैली के कलाकारों ने अजंता,राजपूत और मुगल शैली को आधार मान कर चित्रांकन किया.
7 अगस्त 1871 को जन्मे अवनीन्द्र नाथ ने परिवार में ही संगीत, साहित्य व चित्रकला की प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की थी. इसके पश्चात उन्होने योरोपियन कला व जापानी कला शैलियों में भी निपुणता प्राप्त की. वाश पद्धिति और जलरंगों के प्रयोग से निर्मित उनके चित्रों में भारतमाता, राधाकृष्ण, बुद्ध जन्म, बुद्ध व सुजाता, शाहजहां की मृत्यु, अभिसारिका आदि है. कलाकार होने के साथ वे बंगला साहित्यकार भी थे.
कला शिक्षक के रूप में कलकत्ता आर्ट कालेज के वाइस प्रिंसिपल पद पर उन्होनें नये उदयीमान कलाकारों के लिये प्रेरणास्रोत का काम किया. उनके शिष्यों में नंदलाल बोस, क्षितींद्र नाथ मजूमदार, यामिनी राय, असित कुमार हालदार, देवी प्रसाद राय चौधरी आदि कलाकार है.
देश की सांस्कृतिक परम्परा को मौलिकता से अभिव्यक्त करने के लिये उन्होने "इंडियन सोसायटी ऑव ओरियंटल आर्ट" की स्थापना की थी. सन 1957 में देहावसान के बाद भी उनका नाम भारतीय कला के इतिहास में अमर है.
राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत अवनीन्द्र नाथ टैगोर की "कला क्रांति" का ही परिणाम है कि आज भारतीय चित्रकला नित्य नये आयाम रच रही है.

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

चित्रों के महाराजा रवि वर्मा ... 29 अप्रैल

केरल के तिरुवनन्तपुरम शहर के किलिमानूर राजमहल में 29 अप्रैल 1848 को भारत के विख्यात चित्रकार राजा रवि वर्मा का जन्म हुआ था। बचपन से ही चित्रकला के प्रति उनका रुझान था। उनके चाचा राजा राजा वर्मा ने चित्रकला की प्रारंभिक शिक्षा दी। इसके बाद उन्होंने मदुरा के चित्रकार रामा स्वामी नायडू तथा विदेशी चित्रकार श्री थियोडोर जेंसन से भी चित्रकला की शिक्षा ली। हिन्दू महाकाव्य और धर्मग्रंथो पर आधारित उनके चित्रों में हिन्दू मिथकों का बहुत ही प्रभावशाली तरीके से चित्रण किया गया है। पश्चिम की कलाशैली और पूर्व के कल्पना संसार के अदभुत संगम के लिये वे प्रसिद्ध हुये। तैल माध्यम में एकदम सजीव प्रतिक्रतियां बनाने वाले वे भारतीय कला समाज में अग्रणी चित्रकार माने जाते हैं।



रवि वर्मा के चित्रों का सबसे बड़ा संग्रहालय बड़ौदा के राजपरिवार में स्थित है। 2 अक्टूबर 1906 को चित्रों के महाराजा रवि वर्मा दिवंगत हो गए लेकिन उनके चित्र आज भी उनकी रचनाधर्मिता और जीवन्तता की इबारत गढ़ रहे हैं ।

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित "देवी सरस्वती"

राजा रवि वर्मा, आधुनिक भारतीय चित्रकला का पर्याय माने जाते हैं । उन्होंने पश्चिमी शैली का प्रयोग कर भारत के मिथकीय चरित्रों को अपनी कल्पना के द्वारा सुन्दर रंगों में उकेरा। राजा रवि वर्मा ने सरस्वती, दुर्गा, नल-दमयंती तथा दुष्यंत-शकुंतला जैसे पौराणिक चरित्रों पर आधारित बेहद खूबसूरत चित्र बनाये। पौराणिक चरित्र होने के बावजूद इन चित्रों की शैली पारंपरिक भारतीय चित्रकला शैली से बिलकुल हटकर थी। प्रस्तुत चित्र "देवी सरस्वती" उनके द्वारा सन 1896 में बनाया गया था जो कि वर्तमान में, महाराजा फ़तहसिंह संग्रहालय, लक्ष्मी विलास पैलेस, वड़ोदरा, गुजरात में प्रदर्शित है।



चित्र स्त्रोत: http://en.wikipedia.org/wiki/File:Saraswati.jpg

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

विजुअल आर्ट (दृश्य कला)


विजुअल आर्ट (दृश्य कला)

यानि अभिव्यक्ति  का रचनात्मक व कलात्मक माध्यम
अर्थात अपने विचारों, भावों व संवेदनाओं कों विभिन्न प्रयोगों के द्वारा सरलता से आकर्षक बनाकर प्रस्तुत करना। विजुअल आर्ट के इस व्यापक क्षेत्र में विभिन्न शाखाओं के अपने विशेष गुण व उनकी अपनी रचनात्मक उपयोगिता है।
इसके अर्न्तगत प्रमुखत:
पेटिंग - चित्रकला, ग्राफिक्स (प्रिन्टमेकिंग), म्यूरल, टेक्सटाइल कला
एप्लाइड आर्ट - व्यावहारिक कला/कमर्शियल आर्ट, इलस्ट्रेशन, एनिमेशन, टाइपोग्राफी, फोटोग्राफी, छपाई कला
प्लास्टिक आर्ट - स्कल्पचर या मूर्तिकला ,पॉटरीइस या बर्तन बनाना
कला इतिहास व कला सम्बन्धित अन्य विषयों का अध्ययन किया जाता है।