शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

आज 6 अप्रैल है ...


आज हम चर्चा कर रहे हैं यूरोपीय कला के ऐसे दो कलाकारों की जो केवल 37 वर्ष की आयु तक कला सर्जना कर पाने पर भी अपनी बेमिसाल प्रतिभा साबित कर गये । पहले बात करते हैं उच्च पुनर्जागरण काल के महान कलाकार राफेल सांजियो की ।
6 अप्रैल 1483 (गुडफ्राई डे) को इटली के उर्बिनो शहर में जन्मे राफेल की 8 वर्ष की आयु में माँ की मृत्यु और 11 वर्ष में पिता के देहांत के बाद चाचा ने पालन पोषण किया । चित्रकार पेरुजिनो की चित्रशाला में प्रशिक्षु के रूप में कार्य करने दौरान सैनिक का स्वप्न नामक चित्र की रचना की । इसके बाद अगले दस वर्षों की अवधि में स्कूल ऑफ़ एथेंस व मैडोना जैसे चित्रो की रचना करके अपूर्व ख्याति प्राप्त की । छाया प्रकाश के सिद्दान्तों व संयमित रेखांकन से प्रभावी चित्रांकन इनकी मुख्य विशेषता है । वेटिकन पुस्तकालय में रचित भित्तिचित्र स्कूल आफ़ एथेंस समूह संयोजन, परिप्रेक्ष्य तथा अनेक व्यक्तियों की विभिन्न मुद्रायों के समन्वित प्रस्तुति की अनुपम मिसाल है । इनके मैडोना चित्र मातृत्व,कोमलता व सौन्दर्य के प्रतिमान है । अपने समकालीन चित्रकारो माइकेलांजलो व लिआनार्दो विंसी से आयु में बहुत छोटे होने पर भी वे अद्वितीय प्रतिभा के कारण इन कलाकारो के समकक्ष माने जाते है । 6 अप्रैल (गुडफ्राई डे) के ही दिन सन 1520 में वे इस नश्वर संसार से विदा होकर कला जगत में अमर हो गये ।
आज के दूसरे कलाकार विंसेन्ट वान गॉग है जो राफेल से कुछ अदभुत समानतायें रखते है । क्या यह एक संयोग मात्र ही है कि वे भी केवल 37 वर्ष की आयु (1853-1890) में ही अमर हो गये? और उनका जन्मदिन भी महज 7 दिनों के अंतर पर 30 मार्च को होता है ।
वान गॉग भी केवल दस वर्ष के अवधि तक ही कला सर्जना कर सके थे । छोटी जीवन अवधि में ही अतुलनीय कार्य करके इन दोनो महान कलाकारो ने सिद्ध कर दिया कि प्रतिभा प्रदर्शन के लिये लम्बी आयु आवश्यक नही है ।

सोमवार, 12 मार्च 2012

लघु चित्रकला






भारत की समृद्ध कला परम्परा की एक प्राचीनतम विधा लघुचित्र यानी मिनिएचर पेंटिंग्स है। अजंता के भित्तिचित्रों के पश्चात चित्रकला का विकास अपभ्रंश शैली के अंतर्गत हुआ। इसी अनुक्रम में 10वीं शताब्दी में ताड़पत्रों पर हस्तलिखित धार्मिक या पौराणिक कथाओं की सचित्र ग्रंथो के शुरुआत के साथ ही लघुचित्रों की भी शुरुआत हुई। ताड़पत्रों पर रचित सबसे प्राचीन ग्रंथ "अधिनियुक्ति वृत्ति" मानी जाती है जिसमें कामदेव, श्रीलक्ष्मी पूर्णघट के चित्र पाये जाते है। भारत की लघुचित्र परम्पराओं में मुगल, राजस्थानी, पहाड़ी व दक्षिणी शैली प्रमुख हैं। 14वीं सदी के मध्य मुगलों के उदय के साथ लघुचित्रों की विशिष्ट शैली का प्रचलन हुया। मुगल लघुचित्रों में दरबारी दृश्य, शिकार चित्र, पेड़े-पौधे व पशु-पक्षी आदि शामिल थे। मुगलकाल में हमजानामा, बाबरनामा और अकबरनामा को भी लघु चित्रकलाओं से सुसज्जित किया गया था। इसी दौरान राजस्थान तथा पहाड़ी कला शैलियों ने भी लघुचित्र को विकसित किया। राजस्थानी व पहाड़ी लघुचित्रों के विषयवस्तु प्रकृति व बदलती ऋतुयें, प्रेम के विभिन्न भाव, पौराणिक व धार्मिक कथायें आदि है। इन सभी लघुचित्र रचनाओं में सूक्ष्मता के साथ विविधता, कलात्मकता व सम्प्रेषित भाव दर्शकों को कलाकार की कल्पना से जोड़ देते है। प्राचीनकाल से प्रवाहमान यह चित्रविधान आज भी लोकप्रियता और आकर्षण के नये आयाम रच रही है ।