सोमवार, 12 मार्च 2012

लघु चित्रकला






भारत की समृद्ध कला परम्परा की एक प्राचीनतम विधा लघुचित्र यानी मिनिएचर पेंटिंग्स है। अजंता के भित्तिचित्रों के पश्चात चित्रकला का विकास अपभ्रंश शैली के अंतर्गत हुआ। इसी अनुक्रम में 10वीं शताब्दी में ताड़पत्रों पर हस्तलिखित धार्मिक या पौराणिक कथाओं की सचित्र ग्रंथो के शुरुआत के साथ ही लघुचित्रों की भी शुरुआत हुई। ताड़पत्रों पर रचित सबसे प्राचीन ग्रंथ "अधिनियुक्ति वृत्ति" मानी जाती है जिसमें कामदेव, श्रीलक्ष्मी पूर्णघट के चित्र पाये जाते है। भारत की लघुचित्र परम्पराओं में मुगल, राजस्थानी, पहाड़ी व दक्षिणी शैली प्रमुख हैं। 14वीं सदी के मध्य मुगलों के उदय के साथ लघुचित्रों की विशिष्ट शैली का प्रचलन हुया। मुगल लघुचित्रों में दरबारी दृश्य, शिकार चित्र, पेड़े-पौधे व पशु-पक्षी आदि शामिल थे। मुगलकाल में हमजानामा, बाबरनामा और अकबरनामा को भी लघु चित्रकलाओं से सुसज्जित किया गया था। इसी दौरान राजस्थान तथा पहाड़ी कला शैलियों ने भी लघुचित्र को विकसित किया। राजस्थानी व पहाड़ी लघुचित्रों के विषयवस्तु प्रकृति व बदलती ऋतुयें, प्रेम के विभिन्न भाव, पौराणिक व धार्मिक कथायें आदि है। इन सभी लघुचित्र रचनाओं में सूक्ष्मता के साथ विविधता, कलात्मकता व सम्प्रेषित भाव दर्शकों को कलाकार की कल्पना से जोड़ देते है। प्राचीनकाल से प्रवाहमान यह चित्रविधान आज भी लोकप्रियता और आकर्षण के नये आयाम रच रही है ।

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